पलको के बीच, बना के एक छोटा सा झरोखाँ
देखा जब दुनिया को, पाया कि कितना कुछ अब तक है अनदेखा
अनदेखा कुछ यूँ तो था, कि जिस पर नजरे अब तक गई नही
और बाकी कुछ ऐसा था जो देखा भी, पर मन को ढका हुआ एक भ्रम से
जैसे कुछ देखा ही नही
फिर जब देखा गौर से, पाया, कुछ तो बीच मे खीँचा हुआ है
मेरे और दुनिया के बीच मे एक धुँधला सा परदा पडा हुआ है
वो परदा जिसके अन्दर से, सब कुछ वैसे तो दिख जाता है
पर कुछ तो अपना असर भी परदा दिखलाता है
मेरे मन की सब ईच्छाओ को, हर दृश्य मे
वो घुलमेल के हर पल दिखलता है