मै हूँ जो हर रात, हर घडी
चाँद से बाते करता हूँ
इस दिल के सारे सपनो को
मै उसके दिल मे भरता हूँ
वो चाँद अकेला रातो मे
ऐसे तकता सा रहता है
जैसे आँखो मे सपनो को
बस बाँध के गुमसुम बैठा है
सारे अरमा, सारे सपने
इस आसमान के सागर मे
कहीँ छूट न जाये, गिर न पडे,
बस इसी बात से डरता है,
और एक-टक बैठा रहता है
जब थक जाता है भोर तलक
और सूरज भी आहट करता है…
इसे पहले सूरज की किरणे
छीन ले उसकी आभा को
वो कहीं दूर, बस कहीं दूर
छुपते छुपते, छुप जाता है