सूरज से आती, हर एक किरण को
जो देती है उजियारा, सारी धरा को
नजदीक से जा कर देखा, तो पाया
तेरा ही और सिर्फ तेरा ही साया
फिर यूहीँ न जाने क्यूँ देखा अपने आप को
और पाया अपने आसपास, गहरी अन्धेरी दीवारो को
उन स्याह दीवारो को बहुत टटोला आंखो से
पर कहीँ नही दिखा कोई झरोँखा
कोई एक झरोँखा जिससे आ सकती
और मेरे अन्धेरे जीवन मे उजियारा फैला सकती
कोई एक किरण
कोई एक ऐसी किरण, जो कभी गुजरी हो तूझे छू कर
जिससे इस स्याह अन्धेरे की दीवारो से घिरा मेरा उदास जीवन
महक उठे रोशनी की खुशबू से
फिर न जाने कहाँ से अचानक आया इतना आत्मविशवास
कि मै खुद ही क्यो नही करता, एक झरोँखा बनाने का प्रयास
और फिर मै बनाने लगा एक झरोखा एक स्याह दीवार मे
उस किरण की, हाँ सिर्फ एक किरण की आस मे
मेरे साथ मे थी बस वो आस, और मेरा अत्मविशवास
पर मै था अपनी दीवारो के पार उस संसार से बेखबर
जहाँ चुपके-चुपके सूरज बढ रहा था पश्चिम की तरफ
और जब उस दीवार मे एक छोटा सा झरोँखा होने लगा तैयार
तो बाहर धरती के उस हिस्से मे हो गई थी रात और…