कितनी ही मंजिले बाकी है अब तक
कितनी ही राहों से गुजरना है शब तक
हर शाम अंधेरे से मिलते ही फ़िर से
हर सुबह के सूरज की चाह है दिल में
हर खवाब के बादल से बरसेगा सावन
हर बूँद से भीगू ये चाह है दिल में
सजाता नये कुछ इरादे मैं हर पल
बचाता हवाओं से लौ को मैं हर पल
पहुचना कहाँ है नज़र आ रहा है
ठहरना किधर है वो दिखता नही