कल शाम फिर मिला मुझसे मेरा अनजानापन
युहीँ अकेला रोज कि तरह जाग रहा था
सूनी दीवारो मे जो झरोखा नही था उससे झाँक रहा था
Continue reading अनजानापन
कल शाम फिर मिला मुझसे मेरा अनजानापन
युहीँ अकेला रोज कि तरह जाग रहा था
सूनी दीवारो मे जो झरोखा नही था उससे झाँक रहा था
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