बादलो की परछाईयो को पकडने की चाह मे
चल पडा मै उठ के यूहीँ, एक अंजानी सी राह मे
सोचा न एक पल भी, कि कैसी ये चाह है
जिसकी न मंजिल, ये कैसी वो राह है
Continue reading पछाईयाँ
बादलो की परछाईयो को पकडने की चाह मे
चल पडा मै उठ के यूहीँ, एक अंजानी सी राह मे
सोचा न एक पल भी, कि कैसी ये चाह है
जिसकी न मंजिल, ये कैसी वो राह है
Continue reading पछाईयाँ