विजय
असत्य पर सत्य की
है ये विश्वास, या बस है आस ?
असत्य के विशाल हाँथ
सहस्त्र सर है साथ-साथ
है घोर शोर उसका बस
उसी का बोल बाला है
वो श्वेत है, न काला है
वो अन्धकार में नहीं
उसी पे सब उजाला है
फिर कौन है अँधेरे में
दबी दबी आवाज़ में
वो सत्य है डरा-डरा
है झांकता जरा-जरा
प्रबल नहीं है, क्षीण है…
विजय
असत्य पर सत्य की
है ये विश्वास, या बस है आस ?